प्रेगनेंसी (Pregnancy)
एक महिला के लिए मां बनना एक एहसास जन्नत की अनुभूति से कुछ कम नहीं है। कहते है माँ बनते ही एक औरत का दूसरा जनम होता है। खासकर पहली बार मां बनने एहसास कुछ अलग ही होता है। ख़ुशी, डर और दुविधा सब एकसाथ। माँ बनने का वैसे तो कोई रूल बुक नहीं होता है, माँ का मन जो सही महसूस करता है, वही करता है। पर फिर भी ज़रूरी है की प्रेगनेंसी के दौरान ख़ास ख्याल रखें, ताकि जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहे।
प्रेगनेंसी के दौरान कई तरह के शारीरिक बदलाव और समस्या भी आती है। हर प्रेगनेंसी अपने आप में अलग होता है, उसके लक्षण अलग होते है। कई बार पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं को पता ही नहीं होता की वो गर्भधारण कर चुकी है। सबसे पहले जानते है प्रेगनेंसी के लक्षण क्या है ? कैसे पता चलेगा की आप माँ बनने वाली है?
गर्भधारण के लक्षण
गर्भ ठहरने के छह से आठ हफ्तों के बीच शरीर में अधिक बदलाव नहीं दिखते हैं। पर इन लक्षणों को पहचानकर टेस्ट आप सजग जरूर हो सकते हैं और फिर टेस्ट करवा सकते है।
मासिक चक्र में बदलाव आना
शुरुआती आठ हफ्तों के भीतर सिर्फ एक बार हल्की ब्लीडिंग प्रेगनेंसी का लक्षण हो सकती है। आमतौर पर गर्भावस्था में मासिक धर्म रुक जाती है, परन्तु मासिक धर्म के रुकने के पीछे कई अन्य कारण भी हो सकते है।
थकान और अधिक नींद आना
गर्भ धारण करने के पहले हफ्ते से ही बहुत अधिक थकान होना, प्रोजेस्टोरोन हार्मोन के बढ़ने से सुबह के समय थकान, एक प्रमुख लक्षण है।
ब्रेस्ट में बदलाव होना
प्रेगनेंसी के दूसरे या तीसरे सप्ताह तक ब्रेस्ट में सूजन या कड़ापन महसूस होता है। शरीर में हार्मोनल बदलाव की वजह से यहां कि त्वचा का रंग भी बदलता है।
जी मचलना और उल्टियां होना
यह बहुत हुई आम है की लगभग सभी महिलाओं में मासिक धर्म के रुकने के आठ सप्ताह के भीतर उल्टियां या जी मचलने जैसी समस्या जरूर होती हैं। हालाँकि, ज़रूरी नहीं की सभी गर्भवती महिलाओं को ऐसा हो।
मूड स्विंग होना
प्रेगनेंसी के दौरान कई बार पसंदीदा भोजन या महक से शरीर को एलर्जी हो सकती है। प्रेगनेंसी के पहले महीने में गर्भवती महिला के व्यवहार में काफी उतार-चढ़ाव नजर आने लगता है। चिड़चिड़ापन या बार बार रोना आना बहुत आम है।
प्रेगनेंसी के समय इन बातों का रखें ध्यान
ऐसी कुछ बातों के बारे में जान ले, जिनका पहली प्रग्नेंसी के दौरान आपको पता होना ज़रूरी है।
प्रेगनेंसी का पता चलते ही डॉक्टर से संपर्क करें और उनके निर्देशों का पालन करें।
सबसे पहले हॉस्पिटल का चुनाव करें ताकि आपको हॉस्पिटल बार-बार बदलना न पड़े।
आयरन और विटामिन्स सप्लीमेंट्स को भी समय पर नियमित रूप से लें। प्रेगनेंसी के दौरान सारे ज़रूरी वैक्सीनेशन करवाने में लापरवाही न करें।
अपने खाने-पीने का भी ख्याल रखें और पानी खूब पिएं साथ ही जूस और सूप भी पीती रहें।
अपनी डाइट में दूध, दाल और पनीर जैसी प्रोटीन युक्त चीज़ें शामिल करें। ताज़े फलों का सेवन ज़रूर करें। संपूर्ण आहार लें जिससे शरीर को सभी पोषक तत्व मिल सकें।
जंक फ़ूड खाने से बचें और ज्यादा ऑयली और मीठा खाना बिलकुल ना खाएं।
डॉक्टर की सलाह से प्रेग्नेंसी में एक्सरसाइज़ और योग ज़रूर करें। हो सके तो मेडिटेशन भी करें।
तनाव से दूर रहे और भारी चीज़ें बिलकुल भी ना उठाय।
कोरोना के दौरान अगर आपकी प्रेगनेंसी है तो आपको विशेष ध्यान रखना होगा।
वैसे तो प्रेगनेंसी के समय वॉक करना अच्छा होता है, पर कोरोना के समय घर के छत पर या टेरेस पर ही टहलना सही रहेगा।
डॉक्टर से मिलने जाने पर हमेशा मास्क पहने और ज़रूरी कोविड प्रोटोकॉल्स मानकर चले, जैसे मास्क पहने, ग्लव्स पहने इत्यादि।
लोगों से दूरी बनाकर रखें। घरवालों के संपर्क में आने से पहले उनको सेनेटाइज़ होने को कहें।
समय-समय पर हाथ साफ करती रहें। बाहर से लाये गए सामान को कुछ समय तक बालकनी या टेरिस पर रखें फिर सेनेटाइज़ करके ही इस्तेमाल करें।
सफाई का पूरा ध्यान रखें, पर याद रखें बहुत अधिक केमिकल सैनिटाइज़र का इस्तेमाल न करें। अपना और घरवालों का कोविड वेक्सिनेशन अवश्य करवाएं।
प्रेगनेंसी कब से काउंट होती है?
माँ बनना जितना ही सुखद होता है, उतना ही उलझन भरा होता है। जैसे की प्रेग्नेंट तो गए, लेकिन प्रेगनेंसी को कितना टाइम हुआ है कैसे पता करें? औसत गर्भावस्था कुल 40 हफ्तों यानि 280 दिनों की मानी जाती है जिसकी शुरुआत आपके अंतिम माहवारी चक्र के पहले दिन से होती है। इसे LMP कहा जाता है । औसत गर्भावधि फर्टिलाइजेशन के बाद केवल 38 हफ्ते की ही होती है - और इस तरह से ऑव्युलेशन के समय आप पहले से ही दो हफ्ते की गर्भवती होती हैं। पारंपरिक प्रणाली के तहत आप बस अपनी अंतिम माहवारी की पहली तारीख से आगे गिनती करें, तो आपकी प्रेगनेंसी कब से है आपको पता चल जायेगा। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड और अधिक सटीक ओव्यूलेशन टेस्टिंग जैसी तकनीकों से भ्रूण की आयु जानी जा सकती है। पूरी प्रेगनेंसी को ट्रिमेस्टर में बांटा गया है। 3 -3 महीनों का प्रत्येक ट्रिमस्टर होता है। और अंतिम माहवारी अवधि की तिथि के बाद 37 से 42 हफ्तों के बीच किसी भी समय स्वस्थ शिशुओं का जन्म हो सकता है। अब आप स्वस्थ रहे, सजग रहे और मातृत्व के इस सुख का आनंद उठाये, मगर सावधानी से।