नवरात्रि 2025 ( Navratri 2025)
हिंदू धर्म में वैसे तो दो नवरात्रि ही ज्यादा प्रचलित हैं,लेकिन दो अन्य नवरात्रि भी होती है, जिन्हें गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
साल में कब-कब आती है नवरात्रि
हिंदू धर्म के अनुसार, एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है।
इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
आश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान गरबे के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है।
इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय और वासंती नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें प्रकट नवरात्रि भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं।
नवरात्रि 2025 की तारीखें Navratri 2025 dates
माघ गुप्त नवरात्रि 2025 / Magha Gupt Navratri Date 2025
शुरुआत: 29 जनवरी 2025 (बुधवार)
समाप्ति: 6 फरवरी 2025 (गुरुवार)
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2025 / Ashadha Gupt Navratri Date 2025
शुरुआत: 28 जून 2025 (शनिवार)
समाप्ति: 6 जुलाई 2025 (रविवार)
चैत्र नवरात्रि 2025 / Chaitra Navratri Date 2025
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 30 मार्च 2025 (रविवार) से होगी और समाप्ति 7 अप्रैल 2025 (सोमवार) को होगी।
अष्टमी: 6 अप्रैल 2025
नवमी: 7 अप्रैल 2025
शारदीय नवरात्रि 2025 / Shardiya Navratri Date 2025
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 25 सितंबर 2025 (गुरुवार) से होगी और समाप्ति 3 अक्टूबर 2025 (शुक्रवार) को होगी।
अष्टमी: 2 अक्टूबर 2025
नवमी: 3 अक्टूबर 2025
क्यों कहते हैं इन्हें गुप्त नवरात्रि?
माघ और आषाढ़ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है। जबकि चैत्र और शारदीय नवरात्रि में सार्वजनिक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है।
माघ मास की नवरात्रि में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया गया है। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्र (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।
क्यों मनाई जाती है नवरात्रि
दरअसल आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि दोनों नवरात्र तब मनाई जाती हैं जब मौसम बदल रहा होता है। साथ ही भारत में मार्च और अप्रैल तथा सितंबर और अक्टूबर में दिन और रात की अवधि लगभग समान होती है। वर्ष के इन दोनों समयों में मौसम में बदलाव और सूरज के प्रभाव में एक संतुलन बनता है। चाहे शरद नवरात्र हो या चैत्र इस समय मौसम में न ज्यादा सर्द रहता है ना गरम। इस मौसम में पूजा करने से हमारे भीतर संतुलित उर्जा का प्रवेश होता है। यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
पुराने जमाने में मौसम के बदलने के साथ-साथ लोगों का खान-पान भी वदल जाया करता था। नवरात्र के दौरान लोग व्रत करते हैं और 9 दिनों के व्रत के दौरान शरीर को बदलते मौसम के हिसाब से खुद को ढ़ालने का पर्याप्त समय मिल जाया करता है।
इन 9 दिनों के उपवास के दौरान हमारे शरीर प्रणाली को व्यवस्थित होने का अवसर मिल जाता है। इस दौरान लोग ज्यादा नमक और चीनी से बचते हैं, ध्यान करते हैं और सकारात्मक उर्जा ग्रहण करते हैं। इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है साथ ही हमें और भी ज्यादा दृढ़ निश्चयी बनने में मदद मिलती है। यह बात अब सिद्ध हो चुकी है कि उपवास से हमारा आत्मविश्वास और स्व नियंत्रण बढ़ता है।
नौ दिन के नवरात्रों का महत्व और खास भोग
मां शैलपुत्री
प्रथम नवरात्र में मां दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। मां का वाहन वृषभ है तथा इन्हें गाय का घी अथवा उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी
दूसरे नवरात्र में मां के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। मां को शक्कर का भोग प्रिय है।
मां चंद्रघंटा
मां के इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र बना होने के कारण इनका नाम चन्द्रघंटा पड़ा तथा तीसरे नवरात्र में मां के इसी रूप की पूजा की जाती है तथा मां की कृपा से साधक को संसार के सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। शेर पर सवारी करने वाली माता को दूध का भोग प्रिय है।
मां कुष्मांडा
अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली मां कुष्मांडा की पूजा चौथे नवरात्र में करने का विधान है। इनकी आराधना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार के रोग एवं कष्ट मिट जाते हैं तथा साधक को मां की भक्ति के साथ ही आयु, यश और बल की प्राप्ति भी सहज ही हो जाती है। मां को भोग में मालपूआ अति प्रिय है।
मां स्कंदमाता
पंचम नवरात्र में आदिशक्ति मां दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। इनकी पूजा करने वाले साधक संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं। उनके जीवन में किसी भी प्रकार की वस्तु का कोई अभाव कभी नहीं रहता। इन्हें पद्मासना देवी भी कहते हैं। मां का वाहन सिंह है और इन्हें केले का भोग अति प्रिय है।
मां कात्यायनी
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। छठे नवरात्र में मां के इसी रूप की पूजा की जाती है। मां की कृपा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों फलों की जहां प्राप्ति होती है वहीं वह अलौकिक तेज से अलंकृत होकर हर प्रकार के भय, शोक एवं संतापों से मुक्त होकर खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। मां को शहद अति प्रिय है।
मां कालरात्रि
सभी राक्षसों के लिए कालरूप बनकर आई मां दुर्गा के इस रूप की पूजा सातवें नवरात्र में की जाती है। मां के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के भूत, पिशाच एवं भय समाप्त हो जाते हैं। मां की कृपा से भानुचक्र जागृत होता है मां को गुड़ का भोग अति प्रिय है।
मां महागौरी
आदिशक्ति मां दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा आठवें नवरात्र में की जाती है। मां ने काली रूप में आने के पश्चात घोर तपस्या की और पुन: गौर वर्ण पाया और महागौरी कहलाई। मां का वाहन बैल है तथा मां को हलवे का भोग लगाया जाता है तभी अष्टमी को पूजन करके मां को हलवे पूरी का भोग लगाया जाता है। मां की कृपा से साधक के सभी कष्ट मिट जाते हैं और उसे आर्थिक लाभ भी मिलता है।
मां सिद्धिदात्री
नौवें नवरात्र में मां के इस रूप की पूजा एवं आराधना की जाती है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है मां का यह रूप साधक को सभी प्रकार की ऋद्धियां एवं सिद्धियां प्रदान करने वाला है। जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। मां को खीर अति प्रिय है अत: मां को खीर का भोग लगाना चाहिए।
चैत्र नवरात्र का महत्व
चैत्र के नवरात्र के पीछे का एक वैज्ञानिक आधार है। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां होती हैं। जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है।
ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए, तन-मन को निर्मल रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम के अनुसार चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। क्योंकि यहां रात गिनते हैं इसलिए इसे नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।
रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और, इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है।
चैत्र और आश्विन नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं इनमें भी देवी भक्त आश्विन नवरात्रि का बहुत महत्व है। इनको यथाक्रम वासंती और शारदीय नवरात्र कहते हैं। इनका आरंभ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है। ये प्रतिपदा 'सम्मुखी' शुभ होती है।